कबीरा निर्भय राम जपे महफिल में तेरी यूं हि रहे - The Indic Lyrics Database

कबीरा निर्भय राम जपे महफिल में तेरी यूं हि रहे

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले | संगीत - रवि | फ़िल्म - काजल | वर्ष - 1965

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आ : कबिरा निर्भय राम जप
जब लगदी में बाति (?)
तेल घटा बाती बुझी
सोवेगा दिन-रातिर : महफ़िल में तेरी यूँ ही रहे
जश-ए-चराग़ाँ
आँखों में ही ये रात
ग़ुज़र जाये तो अच्छाआ : साच बराबर तप नहीं
झूठ बराबर पाप
जा के हिरदय साच है
ता के हिरदय आपर : जा कर तेरी महफ़िल से
कहाँ चैन मिलेगा
अब अपनी जगह अपनी
ख़बर जाये तो अच्छाआ : जब मैं था तब हरि नहीं
अब हरि है मैं नाहीं
सब अंधियारा मिट गया
जब दीपक देखा माहिंर : जिस सुबह की तक़दीर में
लिखी हो जुदाई
उस सुबह से पहले
कोई मर जाये तो अच्छा -२