एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं - The Indic Lyrics Database

एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं

गीतकार - सुदर्शन फ़ाकिर | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - ताज अहमद खान | फ़िल्म - Nil | वर्ष - Nil

View in Roman के मक़ाम इनका दिलों में है शराबों में नहीं'>

एक ही बात ज़माने की किताबों में नहीं
जो ग़म-ए-दोस्त में नशा है, शराबों में नहीं
हुस्न की भीख ना मांगेंगे, ना जलवों की कभी
हम फ़क़ीरों से मिलो खुल के हिजाबों में नहीं
हर जगह फिरते हैं आवारा ख़यालों की तरह
ये अलग बात है हम आपके ख़्वाबों में नहीं
ना डूबो साग़र-ओ-मीना में ये ग़म ऐ 'फ़ाकिर'
के मक़ाम इनका दिलों में है शराबों में नहीं