दुनिया मुझको पागल समझे या समझे आवारा - The Indic Lyrics Database

दुनिया मुझको पागल समझे या समझे आवारा

गीतकार - राजा मेहदी अली खान | गायक - मुकेश | संगीत - बिपिन-बाबुल | फ़िल्म - चौबीस घंटे | वर्ष - 1958

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दुनिया मुझको पागल समझे या समझे आवारा
मैं दुनिया की सेवा करने फिरता मारा-मारा ओ

ताक़त से भरपूर रखी हैं अपनी दोनों बाजू
इन्साफ़ को ऐसे तौलें जैसे होय तराजू
जिसमें हो कुछ हिम्मत-टिम्मत
लड़ ले वो दुबारा ए जी लड़ ले वो दुबारा
दुनिया मुझको पागल ...

दुख में हो कोई बूढ़ा-सूढ़ा या कोई लड़की-मड़की
उन्हें बचाने मेरी ताक़त बिजली बन कर कड़की
कर ले दो-दो हाथ चाहे वो
रुस्तम हो या दारा अरे रुस्तम हो या दारा
दुनिया मुझको पागल ...

आँधी बन के जाऊँ और तूफ़ां बन के छाऊँ
जिस रुख पर भी मैं चाहूँ इस दुनिया को ले जाऊँ
तिनका है ये दुनिया मैं हूँ
तूफ़ानों की धारा अरे तूफ़ानों की धारा
दुनिया मुझको पागल ...$