मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग - The Indic Lyrics Database

मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब ना मांग

गीतकार - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ी | गायक - नूरजहां | संगीत - राशिद अत्रे | फ़िल्म - कैदी | वर्ष - 1940

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मुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग-४
मैंने समझा था के तू है तो दरख़्शां है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है-२
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगों हो जाए
यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाएमुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँगअनगिनत सदियों के तारीक बहिमाना तलिस्म
रेश-ओ-अठलस-ओ-कमख़ाब-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लितड़े हुए ख़ून में नहलाए हुएलौट जाती है इधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न, मग़र क्या कीजे-२
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवामुझ से पहली सी मोहब्बत, मेरे महबूब, न माँग