ये रात खुशनसिब है जो अपने चांद को - The Indic Lyrics Database

ये रात खुशनसिब है जो अपने चांद को

गीतकार - समीर | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - दिलीप सेन - समीर सेन | फ़िल्म - आईना | वर्ष - 1993

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ये रात खुशनसिब है जो अपने चाँद को
कलेजे से लगाए सो रही है
यहाँ तो ग़म की सेज पर हमारी आरजू
अकेली मुँह छूपा के रो रही है
साथी मैंने पा के तुझे खोया, कैसा है ये अपना नसीब
तुझ से बिछड गयी मैं तो, यादे तेरी हैं मेरे करीब
तू मेरी वफाओं में, तू मेरी सदाओं में, तू मेरी दुवाओं में
कटती नहीं हैं मेरी रातें, कटते नहीं हैं मेरे दिन
मेरे सारे सपने अधूरे, जिन्दगी अधूरी तेरे बीन
ख्वाबो में ,ख्यालों में, प्यार की पनाहों में
आ छूपा लूँ बाहों में