किसी ने मुझको मेरे घर में आके लूट लिया - The Indic Lyrics Database

किसी ने मुझको मेरे घर में आके लूट लिया

गीतकार - नूर लखनवी | गायक - लता, तलत | संगीत - सी रामचंद्र | फ़िल्म - परछाईं | वर्ष - 1952

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लगाके हाथों में मेहन्दी हलाल कर दाला
बनाके मस्त मुझे हाय्! वार कर दाला
ल: (किसी ने मुझको मेरे घर में आके लूट लिया)
(लूट लिया)
(किसी गरीब को घर में बुलाके लूट लिया)
कोई उम्मीद न हसरत न कुछ तमन्ना थी
अन्धेरा चाया था ? दिल की दुनिया थी
(चराग सी तुम ने जलाके लूट लिया)
लूट लिया)
किसी ने मुझको मेरे घर में आके लूट लिया
हवास-ओ-होश न रहते ये माज्रा होता
जो शक्ल देख ही लेते न जाने क्या होता
सदा हुज़ूर ने अपनी सुनाके लूट लिया
(लूट लिया)
किसी गरीब तो घर में बुलाके लूट लिया
ओऽ ज़माने भर से मैं कह दूँगी तुमने चोरी की
और ऐसी चोरी कि सीनाजोरी भी
कि सोने वाले को तूने जगाके लूट लिया
(लूट लिया)
(किसी ने मुझको मेरे घर में आके लूट लिया)