ये पर्बतों के दायरे, ये शाम का धुआँ - The Indic Lyrics Database

ये पर्बतों के दायरे, ये शाम का धुआँ

गीतकार - साहीर लुधियानवी | गायक - जगजीत सिंह | संगीत - चित्रगुप्त | फ़िल्म - Nil | वर्ष - Nil

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ये पर्बतों के दायरे, ये शाम का धुआँ
ऐसे में क्यों ना छेड़ दें दिलों की दास्तां
जरा सी ज़ुल्फ़ खोल दो, फ़िज़ा में इत्र घोल दो
नज़र जो बात कह चुकी वो बात मुँह से बोल दो
कि झूम उठे निगाह में बहार का समा
ये चुप भी एक सवाल है, अजीब दिल का हाल है
हर एक ख़याल खो गया बस अब यही ख़याल है
कि फासला न कुछ रहे हमारे दरमियाँ
ये रूप रंग ये फबन, चमकते चाँद सा बदन
बुरा न मानो तुम अगर तो चुम लूँ किरन किरन
कि आज हौसलों में है बला की गर्मियां