लकड़ी जल कोयला बेदर्द ज़माना क्या जाने - The Indic Lyrics Database

लकड़ी जल कोयला बेदर्द ज़माना क्या जाने

गीतकार - भरत व्यास | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - कल्याणजी, आनंदजी | फ़िल्म - बेदर्द ज़माना क्या जाने | वर्ष - 1959

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लकड़ी जल कोयला भई कोयला जल भयो राख
मैं पापिन ऐसी जली कोयला भई ना राखकोई आँसू पी कर जीता है कोई टूटे दिल को सीता है
कहीं शाम ढले कहीं चिता जले कहीं ग़म से तड़पते दीवाने
बेदर्द ज़माना क्या जाने -२ओ मालिक तेरा कैसा आलम
यहाँ एक ख़ुशी तो लाख हैं ग़म
बारात कहीं तो कहीं मातम
क़िस्मत के अनोखे अफ़साने
बेदर्द ज़माना क्या ...काँप उठा सिंदूर माँग का वो सुहागन की रात ढली
रानी बन कर आई थी वो आज भिखारिन बन के चली
छूटा है घर जाए किधर अपने भी हुए बेगाने
बेदर्द ज़माना क्या ...उस शाम का होगा सवेरा कहाँ
ये पंछी लेगा बसेरा कहाँ
ये पवन है अगन और गरज़ता गगन
धरती भी लगी अब ठुकराने
बेदर्द ज़माना क्या ...ज़ालिम को अपने ज़ुल्मों की होती कभी पहचान भी है
इन्सान तेरी आँखों में भगवान भी है शैतान भी है
कश्ती से किनारा रूठ गया
ये धकेलती है लहर और आगे
साया भी नहीं अब पहचाने
बेदर्द ज़माना क्या ...चिंगारी से चिंगारी जले और आग से आग सुलगती है
ये बात सरासर सच्ची है कि चोट से चोट लगती है
जिन हाथों में मोतियों की लड़ियाँ
उन्में पड़ी हैं हथकड़ियाँ
अपना ही भाग लगा है आग लगाने
बेदर्द ज़माना क्या ...