रात आइ है नया रंग जमाने के झूठ - The Indic Lyrics Database

रात आइ है नया रंग जमाने के झूठ

गीतकार - | गायक - शांता आप्टे | संगीत - केशवराव भोले | फ़िल्म - अमृत ​​मंथन | वर्ष - 1934

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रात आई है नया रंग जमाने के लिए
लेके आराम का पैग़ाम ज़माने के लिएगुनगुनाती हुई धीरे से ये आती है सबा
थपकियाँ माँ की तरह दे के सुलाने के लिएकैसे बेरहमी से बिखरे हैं ये लाल-ओ-गोहर
आसमाँ क्या तेरी दौलत है लुटाने के लिएक्या ही अच्छा है ये बचपन का ज़माना भी यहाँ
मौज करने के लिए, खेलने खाने के लिए