ये दुनिया, ये महफिल, मेरे काम की नहीं - The Indic Lyrics Database

ये दुनिया, ये महफिल, मेरे काम की नहीं

गीतकार - संतोष आनंद | गायक - लता मंगेशकर | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - प्रेम रोग | वर्ष - 1982

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ये दुनिया, ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं
किस को सुनाऊँ हाल दिल-ए-बेकरार का
बुझता हुआ चराग़ हूँ अपने मज़ार का
ऐ काश भूल जाऊँ, मगर भूलता नही
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का
अपना पता मिले ना ख़बर यार की मिले
दुश्मन को भी ना ऐसी सज़ा प्यार की मिले
उनको खुदा मिले है खुदा की जिन्हे तलाश
मुझको बस एक झलक मेरे दिलदार की मिले
सहरा में आके भी मुझ को ठिकाना ना मिला
गम को भूलाने का कोई बहाना ना मिला
दिल तरसे जिस में प्यार को, क्या समझू उस संसार को
एक जीती बाजी हार के, मैं ढूँढू बिछड़े यार को
दूर निगाहों से आँसू बहाता है कोई
कैसे ना जाऊँ मैं, मुझको बुलाता है कोई
या टूटे दिल को जोड़ दो, या सारे बंधन तोड़ दो
ऐ परबत रस्ता दे मुझे, ऐ काँटों दामन छोड़ दो