ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है - The Indic Lyrics Database

ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

गीतकार - कैफ़ी आज़मी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - हीर रांझा | वर्ष - 1970

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ये महलों, ये तख़्तों, ये ताजों की दुनिया
ये इंसाँ के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
हर एक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी
निगाहो में उलझन, दिलों में उदासी
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
जहाँ एक खिलौना है इंसाँ की हस्ती
ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
जवानी भटकती है बदकार बनकर
जवां जिस्म सजते हैं बाज़ार बनकर
यहाँ प्यार होता है व्योपार बनकर
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है
वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है
यहाँ प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है
जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है