बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे - The Indic Lyrics Database

बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफी - लता मंगेशकर | संगीत - राजेश रोशन | फ़िल्म - काला पत्थर | वर्ष - 1979

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बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे
साँसों में तेरी खुशबू के डेरे
मस्ती के घेरों में
खुशबु के डेरों में
हम खोए जाते हैं
ख्वाबों में जिसको तन्हा जवानी
बरसों से तकती थी तू वही है
छूने से जिसके सीने में मेरे लौ जाग सकती थी तू वही है
कुछ ख़्वाब मेरे, कुछ ख़्वाब तेरे
यूँ मिलते जाते हैं, दिल खिलते जाते हैं, लब गुनगुनाते हैं
साँसों में तेरी खुशबू के डेरे
बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे
बिखरा के ज़ुल्फ़ें झुक जाओ मुझपे
मिलने दो साया तपते बदन को
मैंने हमेशा तेरी अमानत समझा है अपनी जाँ और तन को
तू साथ मेरे, मैं साथ तेरे
रूहों के रूहों से जिस्मों के जिस्मों से सदियों के नाते है
साँसों में तेरी खुशबू के डेरे
बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे