अब कोई गुलशन ना उजड़े - The Indic Lyrics Database

अब कोई गुलशन ना उजड़े

गीतकार - साहिर | गायक - रफ़ी, सहगान | संगीत - जयदेवी | फ़िल्म - मुझे जीने दो | वर्ष - 1963

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अब कोई गुलशन ना उजड़े अब वतन आज़ाद है
रूह गंगा की हिमालय का बदन आज़ाद है
खेतियाँ सोना उगाएं, वादियाँ मोती लुटाएं
आज गौतम की ज़मीं, तुलसी का बन आज़ाद है
मंदिरों में शंख बाजे, मस्जिदों में हो अज़ां
शेख का धर्म और दीन-ए-बरहमन आज़ाद है
लूट कैसी भी हो अब इस देश में रहने न पाए
आज सबके वास्ते धरती का धन आज़ाद है