ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो - The Indic Lyrics Database

ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - Nil | फ़िल्म - नया दौर | वर्ष - 1957

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ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ कि कश्ती, वो बारिश का पानी
मुहल्ले की सबसे निशानी पुरानी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी सी रातें, वो लंबी कहानी
कड़ी धूप में अपने घरसे निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना, वो गिर के संभलना
वो पितल के छल्लों के प्यारे से तोहफे
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी
कभी रेत के उँचे टिलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनिया का गम था, ना रिश्तों के बंधन
बड़ी खुबसूरत थी वो ज़िंदगानी