सलाम-ए-इश्क मेरी जां, जरा कबूल कर लो - The Indic Lyrics Database

सलाम-ए-इश्क मेरी जां, जरा कबूल कर लो

गीतकार - अंजान | गायक - लता - किशोर | संगीत - कल्याणजी आनंदजी | फ़िल्म - मुकद्दर का सिकंदर | वर्ष - 1978

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इश्कवालों से ना पूछो
की उनकी रात का आलम तनहा कैसे गुजरता है
जुदा हो हमसफ़र जिसका वो उसको याद करता है
ना हो जिसका कोई वो मिलने की फ़रियाद करता है
सलाम-ए-इश्क मेरी जां, ज़रा कबूल कर लो
तुम हमसे प्यार करने की ज़रा सी भूल कर लो
मेरा दिल बेचैन है हमसफ़र के लिए
मैं सुनाऊँ तुम्हे बात एक रात की
चाँद भी अपनी पूरी जवानी पे था
दिल में तूफान था, एक अरमान था
दिल का तूफान अपनी रवानी पे था
एक बादल उधर से चला झूमके
देखते देखते चाँद पर छा गया
चाँद भी खो गया उस की आगोश में
उफ़ ये क्या हो गया जोश ही जोश में
मेरा दिल धड़का, मेरा दिल तड़पा
किसी की नज़र के लिए
इस के आगे की अब दास्तां मुझसे सुन
सुन के तेरी नज़र डबडबा जाएगी
बात दिल की जो अब तक तेरे दिल में थी
मेरा दावा है होंठों पे आ जाएगी
तू मसीहा मोहब्बत के मारों का है
हम तेरा नाम सुन के चले आए है
अब दवां दे हमे या तू दे दे जहर
तेरी महफील में ये दिल जले आए है
एक एहसान कर अपने मेहमान पर
अपने मेहमान पर एक एहसान कर
दे दुवाएं तुझे उम्रभर के लिए