खिलाफते हैं गुल यहाँ खिल के बिखराने को - The Indic Lyrics Database

खिलाफते हैं गुल यहाँ खिल के बिखराने को

गीतकार - नीरज | गायक - किशोर कुमार | संगीत - एस डी बर्मन | फ़िल्म - शर्मीली | वर्ष - 1971

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खिलते हैं गुल यहाँ, खिलके बिखरने को
मिलते हैं दिल यहाँ, मिलके बिछड़ने को
खिलते हैं गुल यहाँ ...(कल रहे ना रहे, मौसम ये प्यार का
कल रुके न रुके, डोला बहार का )-(२)
चार पल मिले जो आज, प्यार में गुज़ार दे
खिलते हैं गुल यहाँ ...झीलों के होंठों पर, मेघों का राग है
फूलों के सीने में, ठंडी ठंडी आग है
दिल के आइने में तू, ये समा उतार दे
खिलते हैं गुल यहाँ ...प्यासा है दिल सनम, प्यासी ये रात है
होंठों मे दबी दबी, कोई मीठी बात है
इन लम्हों पे आज तू, हर खुशी निसार दे
खिलते हैं गुल यहाँ ...