गीतकार - पी एल संतोषी | गायक - शमशाद, मोहनतारा, लता, सहगान/चितलकर, रफ़ी, जी एम साजन, सहगान | संगीत - सी रामचंद्र | फ़िल्म - खिड़की | वर्ष - 1948
View in Romanक्या मिल गया भगवान तुम्हें दिल को दुखाके
क्या मिल गया भगवान तुम्हें दिल को दुखाके
अरमानों की नगरी में मेरी आग लगाके
क्या मिल गया
हम सोच रहे थे कभी दिल दिल से मिलेंगे
जीवन में मोहब्बत के कभी फूल खिलेंगे
ये क्या थी खबर तुम को ना आएगी दया भी
रख दोगे किसी दिन मेरी दुनिया को मिटाके
अरमानों की नगरी
आकाश ही दुश्मन नहीं, दुश्मन है ज़मीं भी
दुख के मारे तो नहीं, चैन कहीं भी
इस जीने से अब मौत ही आजाये तो अच्छा
जब छूट गया हाथ उनका मेरे हाथों में आके
अरमानों की नगरी
मालूम ना था खाक़ में मिल जायेंगे एक दिल
खुद अपनी ही हम आग में जल जाएंगे एक दिल
तुमसे तो ये उम्मीद ना थी जल के खेवय्या
नैय्या को डुबो दोगे किनारे पे लाके
अरमानों की नगरी