दयार ए दिल की रात में चरग सा जला गया - The Indic Lyrics Database

दयार ए दिल की रात में चरग सा जला गया

गीतकार - नासिर काज़मी | गायक - आशा भोंसले, गुलाम अली | संगीत - गुलाम अली | फ़िल्म - मेराज-ए-ग़ज़ल (गैर फ़िल्म) | वर्ष - 1983

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दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया
मिला नहीं तो क्या हुआ वो शक़्ल तो दिखा गयावो दोस्ती तो ख़ैर अब नसीब-ए-दुश्मनाँ हुई
वो छोटी छोती रंजिशों का लुत्फ़ भी चला गयाजुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिये
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गयापुकारती हैं फ़ुर्सतें कहाँ गईं वो सोहबतें
ज़मीं निगल गई उन्हें या आसमान खा गयाये सुबहो की सफ़ेदियाँ ये दोपहर की ज़र्दियाँ
अब आईने में देखता हूँ मैं कहाँ चला गयाये किस ख़ुशी की रेत पर ग़मों को नींद आ गई
वो लहर किस तरफ़ गई ये मैं कहाँ चला गयागए दिनों की लाश पर पड़े रहोगे कब तलक
अलम्कशो उठो कि आफ़ताब सर पे आ गया