दो ही लफ़्ज़ों का था ये अफ़साना - The Indic Lyrics Database

दो ही लफ़्ज़ों का था ये अफ़साना

गीतकार - तनवीर नकवी | गायक - तलत | संगीत - एस मोहिंदर | फ़िल्म - शिरीन फरहाद | वर्ष - 1956

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दो ही लफ़्ज़ों का था ये अफ़साना
जो सुना कर ख़ामोश हो बैठा
इब्तिदा ये के तुमको पाया था
इन्तिहाँ ये के ख़ुद को खो बैठा

सुनाऊँ किसको अफ़साना न अपना है न बेगाना
लिखा है मेरी क़िस्मत में जहाँ की ठोकरें खाना

अगर ये भी नहीं तो फिर जुनूँ की इन्तिहाँ क्या है
के दीवाने भी अब कहने लगे हैं मुझको दीवाना

भरी दुनिया में इस दिल को अकेला छोड़ने वाले
तुम्हें गुलशन मुबारक हो मुझे मेरा ये वीराना$