दो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार - The Indic Lyrics Database

दो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार

गीतकार - शैलेंद्र | गायक - लता | संगीत - शंकर-जयकिशन | फ़िल्म - पूनम | वर्ष - 1952

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दो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार
दुखड़े हैं बेशुमार
दो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार
दुखड़े हैं बेशुमार
है ज़िंदगी उसी की जो हँस हँस के दे गुज़ार
हँस हँस के दे गुज़ार

उभरें गे फिर सितारे चमके गा फिर से चाँद
चमके गा फिर से चाँद
उभरें गे फिर सितारे चमके गा फिर से चाँद
चमके गा फिर से चाँद
उजड़े हुए चमन में आए गी फिर बहार
आए गी फिर बहार
है ज़िंदगी उसी की जो हँस हँस के दे गुज़ार
हँस हँस के दे गुज़ार

है धूप कहीं छया ये ज़िन्दगी की रीत
ये ज़िन्दगी की रीत
है आज तेरी हार सखी कल है तेरी जीत
है आज तेरी हार सखी कल है तेरी जीत
हर साँस तुझ से बस यही कहती है बार बार
कहती है बार बार
है ज़िंदगी उसी की जो हँस हँस के दे गुज़ार
हँस हँस के दे गुज़ार

मरने के सौ बहाने जीने को सिर्फ़ एक
उम्मीद के शरू में बजते हैं दिल के तार
बजते हैं दिल के तार
है ज़िंदगी उसी की जो हँस हँस के दे गुज़ार
हँस हँस के दे गुज़ार
दो दिन की ज़िंदगी में दुखड़े हैं बेशुमार
दुखड़े हैं बेशुमार$