कहिन एक मासुम नाज़ुक सी लद्दाकिय - The Indic Lyrics Database

कहिन एक मासुम नाज़ुक सी लद्दाकिय

गीतकार - कमाल अमरोही | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - खैय्याम | फ़िल्म - शंकर हुसैन | वर्ष - 1977

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कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सीमुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसाकर
सरहने से तकिये गिराती तो होगीवही ख़्वाब दिन के मुंडेरों पे आके
उसे मन ही मन में लुभाते तो होंगे
कई साज़ सीने की खामोशियों में
मेरी याद में झनझनाते तो होंगे
वो बेसाख्ता धीमे-धीमे सुरों में
मेरी धुन में कुछ गुनगुनाती तो होगीचलो खत लिखें जी में आता तो होगा
मगर उंगलियां कँप-कँपाती तो होंगी
कलम हाथ से छूट जाता तो होगा
उमंगें कलम फिर उठाती तो होंगी
मेरा नाम अपनी किताबों पे लिखकर
वो दांतों में उँगली दबाती तो होगीज़ुबाँ से अगर उफ़ निकलती तो होगी
बदन धीमे धीमे सुलगता तो होगा
कहीं के कहीं पांव पड़ते तो होंगे
दुपट्टा ज़मीं पर लटकता तो होगा
कभी सुबह को शाम कहती तो होगी
कभी रात को दिन बताती तो होगी