दिल कहे रुक जा रे रुक जा, यहीं पे कही - The Indic Lyrics Database

दिल कहे रुक जा रे रुक जा, यहीं पे कही

गीतकार - साहिर लुधियानवी | गायक - मोहम्मद रफ़ी | संगीत - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल | फ़िल्म - मन की आंखें | वर्ष - 1970

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दिल कहे रुक जा रे रुक जा, यहीं पे कहीं
जो बात इस जगह है कहीं पर नहीं

परबत ऊपर खिड़की खोले, झाँके सुंदर भोर, चले पवन सुहानी
नदियों के यह राग रसीले, झरनों का ये शोर, बहे झरझर पानी
मदभरा, मदभरा समा, बन धुला धुला
हर कली सुख पल यहाँ, रस घुला घुला
तो दिल कहे रुक जा हे रुक जा
नीली नीली झील में झलके नील गगन का रूप, बहे रंग के धारे
उँचे उँचे पेड़ घनेरे, छनती जिनसे धूप, खडे बाँह पसारे
चंपई चंपई फ़िज़ा, दिन खिला खिला
डाली डाली चिड़ियो की सदा, सूर मिला मिला
तो दिल कहे रुक जा रे रुक

परियों के यह जमघट जिनके फुलो जैसे गाल, सब शोख हठीली
इनमें है वो अल्हड़ जिसकी हिरनी जैसी चाल बड़ी छैल छबीली
मनचली मनचली अदा, छब जवान जवान
हर घड़ी चढ़ा रहा नशा, सुध रही कहाँ
तो दिल कहे रुक जा रे रुक जा