छड़ी रे छड़ी कैसी गले में पड़ी - The Indic Lyrics Database

छड़ी रे छड़ी कैसी गले में पड़ी

गीतकार - गुलजार | गायक - लता - रफी | संगीत - मदन मोहन | फ़िल्म - मौसम | वर्ष - 1975

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छड़ी रे छड़ी कैसी गले में पड़ी
पैरों की बेड़ी कभी लगे हथकड़ी
सीधे सीधे रास्तों को थोड़ासा मोड़ दे दो
बेजोड़ रूहों को हल्का सा जोड़ दे दो
जोड़ दो ना टूट जाए साँसों की लड़ी
लगता है साँसों में टूटा है काँच कोई
चुभती है सीने में धीमी सी आंच कोई
आँचल से बाँध ली है आग की लड़ी
धीरे धीरे चलना सपने नींदों में डर जाते है
कहते है सपने कभी जागे तो मर जाते है
नींद से न जागे कोई ख़्वाबों की लड़ी